चार दोस्त गाव् में एक सरकारी पाठशाला में पढ़ते थे चारो होशियार थे। उनमे से एक बड़ा ही गरीब था. तीन अच्छे परिवार से थे १० कक्षा पूर्ण करने पर तीन दोस्त शहर पढ़ने चले गए। गरीब दोस्त गांव में ही जितना था पढ़ा। शहर जाकर पढ़ने की इच्छा थी मगर नहीं जा पाया कुछ दिन बाद वो भी शहर चला गया। एक होटल में वो वेटर की नौकरी करने लगा साथ साथ पढाई भी करने लगा। वो पढ़ा मगर वही वेटर का काम करता रहा। उसके वो तीनो दोस्त परदेस पढ़ने चले गए तीनो साथ में पढ़े और पढाई ख़त्म कर कर वापस आये। एक दिन अचानक वो तीनो दोस्त उसी होटल में खाना खाने के लिए गए। होटल बड़ा और शानदार था। इत्तफाक से उसे उसी वेटर ने खाना सर्व किया पहली नजर में वेटर ने जान लिया ये तो मेरे दोस्त है। मगर वो बड़ा समझदार था मालिक सामने अपने दोस्तों की बेइज्जती न हो इस लिए वो शांत रहा पर हर बार जब भी वो खाना परोसता तब निहारकर जरूर अपने हर एक दोस्त को देखता। तीनो दोस्त शायद क्यों पर अपने लैपटोप में मग्न थे। खाना हुवा बिल आया। तीनो ने मिलकर बिल दिया और चले गए। उनके जाने के बाद होटल मालिक ने वेटर से पूछा तुम बार बार उनकी तरफ क्यों देख रहे थे। उन्होंने जितने का बिल हुवा उतना ही पैसा दिया है आज तक इस होटल में ऐसा कभी नहीं हुवा की बिना टिप दिए कोई ग्राहक यहाँ से चला जाये। वो बहोत ही अजीब लोग थे तुम्हारे लिए कोई टिप भी नहीं छोड़ गए. वेटर को बड़ा बुरा लगा पर अपने दोस्तों की बुराई वो नहीं करना चाहता था इसलिए वो चुप रहा। कुछ देर बार जब वो टेबल साफ कर रहा था तब उसे वह एक कागज का टुकड़ा मिला। उसने वो पढ़ा और उसकी आंखे भर आई उस पर एक पता लिखा था और मोबाइल नंबर भी लिखे थे। उस कागज पर वो दोस्त ये लिख गए थे मित्र यदी हम तुम्हे वह अपनी पहचान बताते तो तुम्हे जीवनभर अपने आप से नफरत होती। हमने इस एरिया में एक बड़ी फॅक्टरी लगाई है हमारे यहाँ हजारो मजदुर और कर्मचारी काम करते है वह कैंटीन तुम चलाओ। मालिक बनो मित्र हम कल भी वही थे और कल भी वही रहेंगे ------------www.vinoddahare.blogspot.com
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