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Monday, September 10, 2018

प्यार मे दुरी क्यो होती है ? / Why is there distance in love?


दुनिया मे हर इन्सान कभी ना कभी किसी ना किसी से प्रेम करता है. मा ,बाप, बहन, भाई, चाचा ,चाची ,मामा, मामी दोस्त सभी प्रकारके रिश्ते निभाते समय कही ना कही रीश्तो मे टकराव की वजह क्या होती है ? . यदी एक लडकी ओर एक लडके मे प्रेम होता है तो उसकी एक अलग पहचान होती है उस प्रेम मे एक स्वार्थ होता है. भविष्य की योजनाये होती है शादी एकमात्र अंत इस प्रेम का होता है.  मगर रिश्ते निभाते समय प्रेम मे कोई स्वार्थ नही होता वो तो निभाने ही पडते है. मुख्य प्रश्न यही होता है की किसी भी रिश्ते मे दरार क्यो आती है ?एक उदाहरण के तौर पर एक लडका ओर एक लडकी के प्रेम संबंध जो काफी दिनो से चलं रहे होते है प्यार की गहराई काफी हद तक गुजर जाती है लडका लडकी एक दुसरे को देखे बिना खाना तक नही खाते ऐसे प्रेम को आप क्या कहेंगे ? यह प्रेम की संपूर्ण परिभाषा हो सकती है. मगर इतने दिन एक दुसरे के साथ प्रेम करणे के बाद भी यदी किसी कारण वश दोनो मे break up  होता है तो क्यू  ऐसे होता है ? जिसकी वजह से इतने दिनो का प्रेम पलभर मे बिखर जाता है.
            जब भी कोई इन्सान किसी से ,किसी भी व्यक्ती ,वस्तू या किसी भी चीज से प्रेम करता है तो उसके व्यवहार को अपने मन मे मस्तीस्क मे यादो के रूप मे संजोये रखाता है इन्सान के पास स्मृती ओर विस्मृती ऐसी दो परिभाषाये होती है हम सकारात्मक घटनाये स्मृती मे रखते है जैसे की किसी ने हमारी तारीफ की तो उसे हम सकारात्मक रूप से अपनी स्मृती मे रखते है वह इन्सान दिखते है हम प्रसन्न हो जाते है. यदी किसी ने हमारा अपमान किया हो तो हम उसे अपनी विस्मृती मे रखते है.उसे बार बार टालने की कोशिश करते है.  हम जब भी किसी से प्रेम करते है तो हमे उससे सिर्फ ओर सिर्फ प्रेम ही चाहिये होता है. यदी वो हमे प्रेम के विपरीत कोई प्रतिक्रिया देता है तो हमे ये स्वीकार ही नही होता क्यो की हम उसकी अपने मन मे दिमाग मे एक छवी बना चुके होते है उसकी एक प्रतिमा बना चुके होते है ओर हम चाहते है के वो छवी जो हमने अपने मन के भीतर बनी है वो मन मुताबिक ही कार्य करे मगर सामने वाला इन्सान जो वास्तव है जो वास्तविकता मे जिता  है ओर हम कल्पना मे अपने छवी के अनुसार  उससे अपेक्षा करते है. वास्तविकता ओर कल्पना मे फरक होता है. हम जो है वो हमारे लिये वास्तविकता नही होती मगर ओरो के लिये वास्तविकता होती है. हम ओरो को देखते है समझते है वो हमारे लिये वास्तविकता होती है उनके लिये नही. इसी का कारण ये होता है की रिश्तो मे टकराव हो जाता है प्रेम के तीन पह्लु होते है एक होता है शरीर दुसरा होता है कर्म ओर तिसरा होता बुद्धी प्रेम शरीर से नही होता यदी प्रेम शरीर से होता तो संसार मे काले ओर क्रुरूप दिखाने वाले लोगो से प्रेम के उदाहरण इतिहास मे न दिखते. प्रेम मन से भी नही होता क्यो की वास्तविकता मे मन नाम की कोई चीज वास्तविकता मे होती ही नही है भावनाये निर्माण होती है फीर उनकी इच्चाये बनती है मन एक ऐसी पहेली है जो आज तक किसी से भी छुटी नही है. आखिर मन क्या है ? इसका आज तक किसी को समझ नही आया है. इसलिये इन्सान की पहचान सिर्फ उसके शरीर से होती है. एकमात्र शरीर ही इन्सान के पहचान का जरिया होता है. इसलिये मन नाम की अदृश्य शक्ती इस संसार मे है मगर प्रेम ओर कर्म के बीच बडा ही अंतर होता है. हमारे कर्म ही हमारे पीछे हमारी मौजुदगी का अहसास बताते है जैसे की किसी काम के लिये अगर वो होता तो तुरंत ये काम हो जाता ऐसा लोग कहते है. कर्म इन्सान की पहचान हो सकते है मगर प्रेम नही क्यो की सिर्फ जरुरत पुरी होती है. तिसरी होती है बुद्धी जीसके कारण इन्सान अपना जीवन बडी ही सुंदरता से जिता है. जीवन के छोटे बडे फैसले बुद्धी से ही लिये जाते है इसलिये प्रेम बुद्धी से किया नही जा सकता है. हर किसी को प्रेम होता है मगर कीस माध्यम से प्रेम होता है ये कोई नही बात सकता.  यदी प्रेम इस शरीर ,कर्म ओर बुद्धी से नही होता तो फिर टकराव की स्थिती कैसे प्राप्त होती है ? इसका सरलं कारण यही होता है की एक प्रेमी ओर एक प्रेमिका जिनके शरीर विभिन्न प्रकार के अलग होते है दोनो ने अपने अपने दिमाग मे वास्तविकता से परे एक दुसरे की अलग छ्वी बना रखी है उस छ्वी से वो बाहर वो एक दुसरे को वास्तविकता मे देखना ही नही चाहते. अपनी बुद्धी को को वास्तविकता देखणे नही देना चाहते. इसलिये जब भी कोई ऐसा मोड आता है की वास्तविकता सामने आती है तो उस वास्तविकता को दोनो मे से एक कोई स्वीकार नही करता वास्तविकता तो वास्तविकता ही होती है जैसे गिलास मे भर पाणी वास्तविकता मे पाणी होता है दुनिया के किसी कोने मे उसकी वास्तविकता नही बदली जा सकती वही पाणी जब किसी की प्यास बुझाता है तो उसकी वास्तविकता जीवन के रूप मे आ जाती है वही जीवन जब शरीर से बाहर आता है तो उसे हम गंदगी का नाम देते है यह वास्तव है जो सदा सत्य होता है. प्रेम मे सत्य को स्वीकार करणे की शक्ती प्रेमियो मे नही होती इसलिये वो सत्य स्वीकार नही कर पाते ओर टकराव हो जाता है. ऐसी ही प्रक्रिया हर प्रेम मे होती है फिर वो मा बाप या किसी वस्तू प्राणी पशु पक्षी के साथ ही क्यू ना हो 
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